चक राजासर हत्याकांड : 12 बरसी के उपरांत भी न्याय की दरकरार

राज्य मानवाधिकार आयोग ने तलब किया था जांच अधिकारी को नोहर में उपखण्ड अधिकारी कार्यालय के पास जहां पांच साल तक लम्बा आंदोलन चला और इसके उपरांत राज्य सरकार ने 14 सितंबर 2016 को अधिसूचना के मार्फत जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दी तो दूसरी ओर राज्य मानवाधिकार आयोग में भी इस प्रकरण में लम्बी सुनवाई हुई। राज्य मानवाधिकार आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष जस्ट्सि श्री प्रकाश टांटिया ने प्रकरण संख्या 11/15/3241 ने 3 जनवरी 2017 को फैसला सुनाया।

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श्रीगंगानगर/हनुमानगढ़। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में 21-22 जून की मध्य रात को चक राजासर में एक ही परिवार के चार सदस्यों की तेजधार हथियार से निर्मम हत्या कर दी गयी थी। इस हत्याकांड का खुलासा नहीं हो पाया, इसके पीछे कारण क्या थे? हत्यारों का शिकार हुई फैमिली तो एक साधारण परिवार से थी, फिर उससे किस प्रकार की रंजिश हो सकती है। कौन है जो चार लोगों की हत्या के बहुचर्चित और लम्बे आंदोलन के उपरांत भी जांच एजेंसियों के हाथ आरोपितों तक नहीं पहुंचने देना चाहते।

 

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दो माह बाद चक राजासर हत्याकांड की 13वीं बरसी मनाई जायेगी। लालचंद सुथार, उसकी पत्नी सरोज, पुत्रियों सिमरन और निशा की हत्या कर दी गयी थी। परिवार की एक मात्र सदस्य अनीशा बच गयी थी, क्योंकि वह वारदात की रात ननिहाल गयी हुई थी। वह भी उस समय मासूम थी किंतु वारदात के 13सालों उपरांत वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने के योग्य हो गयी है।

क्या हुआ था 13 साल पहले?

गत 2009 की 22 जून की प्रात: बलवंतसिंह ने अपने भांजे सुरेन्द्र को दूध के लिए चक राजासर निवासी लालचंद सुथार के घर पर भेजा था। वह घर के भीतर गया तो अंदर का दृश्य देखकर उसकी आत्मा भी कांप उठी। चार लोगों की हत्या कर दी गयी थी और खून चारपाई के नीचे से बहता हुआ आंगन तक आकर सूख गया था। सुरेन्द्र ने अपने मामा और मामा ने ललचंद के पिता मनीराम सुथार को घटना के बारे में बताया।

मनीराम ने इस बारे तुरंत ही नोहर थाना पुलिस को सूचित किया। तत्कालीन थानाधिकारी रणवीर मीणा, सीओ नवीन क्लॉर्क, एडीशनल एसपी यादराम फांसल, एसपी मोहनलाल निठारवाल घटनास्थल पर पहुंच गये। घटना की जानकारी स्टेट व रेंज कंट्रोल रूम को देकर पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में ए श्रेणी की नाकाबंदी करवायी गयी। चारों तरफ तनाव पसर गया था। आईजी मेघचंद मीणा ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया और उच्चाधिकारियों को भी अवगत करवाया।

नोहर क्षेत्र में इस घटना को लेकर तनाव व्याप्त हो गया था और इसको देखकर आसपास के थानों से भी अतिरिक्त जाब्ता मंगवा लिया था। भारी पुलिस फोर्स गांव और उसके आसपास लगाकर जांच आरंभ की गयी। मनीराम सुथार की रिपोर्ट के आधार पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया।

सरोज के भाई एवं हरियाणा निवासी हरिप्रकाश सुथार ने बताया कि जब उन्हें इस वारदात की जानकारी मिली तो वे जयपुर में थे। वे तुरंत ही राजासर के लिए रवाना हो गये। उनका कहना है कि पुलिस ने पहले ही दिन मामले को दबने का प्रयास आरंभ कर दिया था। गांव में घर-घर तलाशी ली गयी। इसका विरोध हो रहा था क्योंकि जिन बिंदुओं पर जांच करनी चाहिये थी, वह नहीं की जा रही थी।

सुथार का कहना है कि कुछ लोग थे, जो मामले को दबाने का प्रयास कर रहे थे और उनके यह प्रयास कामयाब भी होने लगे थे और पुलिस ने एक राजकुमार नामक व्यक्ति को गिरफ्तार भी कर लिया। वह एडीजे कोर्ट से बरी हो गया। उसके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं होने का दावा किया गया था। उसकी बे्रन मैपिंग भी करवायी गयी। हाथों के निशान भी लिये गये थे किंतु घटनास्थल पर आरोपी बनाये गये राजकुमार के हाथों के निशान नहीं मिले। हत्याकांड को जनांदोलन का रूप देने वाले संघर्षकर्ता हरिप्रकाश ने बताया कि उनकी एक भांजी बची थी अनीशा। इस समय वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने के योग्य हो गयी है। अभी तक उसके माता-पिता के हत्यारों को नहीं तलाशा जा सका है।

राज्य मानवाधिकार आयोग ने तलब किया था जांच अधिकारी को
नोहर में उपखण्ड अधिकारी कार्यालय के पास जहां पांच साल तक लम्बा आंदोलन चला और इसके उपरांत राज्य सरकार ने 14 सितंबर 2016 को अधिसूचना के मार्फत जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दी तो दूसरी ओर राज्य मानवाधिकार आयोग में भी इस प्रकरण में लम्बी सुनवाई हुई। राज्य मानवाधिकार आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष जस्ट्सि श्री प्रकाश टांटिया ने प्रकरण संख्या 11/15/3241 ने 3 जनवरी 2017 को फैसला सुनाया।

आयोग के अध्यक्ष ने अपने फैसले में अंकित किया है कि इस प्रकरण में पुलिस अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाये थे। आयोग ने कहा कि वे हैरान थे कि एक आरोपी जिसके फिंगर प्रिंट घटनास्थल, चीनी टार्च आदि भी पर नहीं मिले, उसके खिलाफ अदालत में चालान पेश किया गया और उस राजकुमार को डेढ़ साल तक हत्या जैसे मामले में जेल में रखा गया।

आयोग ने एडीजे अदालत से संबंधित प्रकरण की पत्रावली को भी तलब किया और इसके साथ ही जांच अधिकारी रणवीर सिंह को भी आयोग के समक्ष जवाब देने के लिए कहा। पीडि़त पक्ष ने आरोप लगाया कि पुलिस ने जन आंदोलन को देखते हुए आरोपितों को बचाने के लिए एक ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार किया जो बाद में साक्ष्य के अभाव में बरी हो गया। हालांकि रणवीर सिंह ने अदालत के समक्ष इस बात से इन्कार किया।

अदालत ने प्रकरण की सुनवाई के उपरांत पीडि़त परिवार को 10 लाख तथा राजकुमार को अवैध रूप से जेल में रखने के आरोप में 3 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने का आदेश दिया। हैरानी की बात यह भी है कि फैसले के पांच सालों उपरांत भी पीडि़त परिवार को अभी तक सहायता राशि प्राप्त नहीं हो पायी है।

एक प्रयास संस्था करती है बरसी पर कार्यक्रम

नोहर में एक प्रयास संस्था हत्याकांड में मारे गये चारों लोगों की आत्मिक शांति के लिए चक राजासर में श्रद्धांजली कार्यक्रम आयोजित करती है। इस कार्यक्रम के माध्यम से घटनाक्रम को याद किया जाता है। इस बार 13वीं बरसी होगी और परिवार को यह यकीन नहीं है कि इतने वर्ष गुजर जाने के उपरांत भी इस कांड की गुत्थी को सुलझाया जा सकेगा। हैरानीजनक बात यह भी है कि इस प्रकरण से जुड़े अनेक अधिकारी बरसों तक बीकानेर रेंज में ही पदस्थापित रहे।

VIAसतीश बेरी
SOURCEसतीश बेरी्
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