बधाई हो! भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले शतक बना सकता है

पैट्रोलियम पदार्थ जनवरी के बाद 85 डॉलर से नीचे, फिर भी महंगाई बढ़ेगी क्योंकि रुपया कमजोर हो रहा है अडाणी-अम्बानी की खुशियां भारतीयों के कंधों पर बोझ

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नई दिल्ली/न्यूयार्क (टीएसएन)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को भारतीय व्यवसायी गौतम अडाणी के दूसरे सबसे अमीर आदमी बनने, भारत की अर्थव्यवस्था ब्रिटेन से बढ़ी होने पर बधाई दी जाये अथवा कमजोर होते रुपये की दुदर्शा पर शिकायत की जाये। दोनों ही मंच हैं। जो बधाई देना चाहता है वह पीएमओ के ट्वीटर हैंडल पर शुभकामना संदेश भेज सकता है और जो शिकायत करना चाहता है, उसको एक चिट्ठी अवश्य लिखनी चाहिये। मन की बात भी पीएम को बतायी जानी चाहिये। वे भी मन की बात दुनिया के समक्ष पेश करते हैं।

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जो ताजा व दुखद भरा समाचार है, वह यह है कि डॉलर के मुकाबले रुपया और कमजोर हो गया। सोमवार को अंतर बैकिंग मुद्रा बाजार में रुपये का मूल्य 81.67 रुपये प्रति डॉलर तक पहुंच गया। इसी तरह पिछले कारोबारी दिवस रुपया 30 पैसे गिरकर 81.09 रुपये प्रति डॉलर पर रहा था। पाकिस्तानी रुपये में सुधार हुआ है और वह 237 रुपये प्रति डॉलर तक पहुंच गया। रुपया शुक्रवार को 240 रुपये के स्तर को छू गया था। इसके उपरांत वहां के वित्त मंत्री से इस्तीफा मांग लिया गया। फायनेंस मिनिस्टर के इस्तीफे के उपरांत रुपया सोमवार को पहले कारोबारी दिवस में मजबूत हो गया और वहां का शेयर बाजार भी करीबन 500 अंक चढ़ गया।

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अगर भारतीय मुद्रा की हालत को देखी जाये तो 2021 में इसका मूल्य 73.93 था। इसका अर्थ है कि एक साल के भीतर ही करीबन 8 रुपये की गिरावट को दर्ज किया गया। अगर वित्त मंत्रालय का इस मुद्दे पर बयान लिया जाये तो वहां एक से एक पंक्ति का उत्तर मिलेगा, यूएस का फैडरल बैंक ब्याज दरों को बढ़ा रहा है और इसका असर व्यापक रूप से दुनिया की मुद्राओं पर दिखाई दे रहा है। पौंड और यूरो के मुकाबले भी सोमवार को डॉलर मजबूत हुआ। अमेरिका में महंगाई पर नियंत्रण के लिए बाइडेन प्रशासन लगातार ब्याज दरों को बढ़ा रहा है। इसका असर महंगाई पर तो कम होगा किंतु बेरोजगारी इससे बढ़ेगी।

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दुनिया में इस समय मंदी की आशंका प्रबल हो रही है। इस कारण कच्चा तेल 9 माह के निचले स्तर पर पहुंच गया। वह नवंबर के सौदों के लिए 85 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे पहुंच गया था। 100 डॉलर प्रति बैरल को छूने वाले कच्चे तेल की कम होती कीमतों का लाभ भारतीयों को नहीं मिल पायेगा क्योंकि एक साल के भीतर ही भारतीय मुद्रा 8 रुपये डॉलर के मुकाबले कमजोर हो गयी है। शेयर बाजार भी सोमवार को फिर से कमजोर दिखाई दिया। 953.70 अंक गिरकर वह 57145 पर बंद हुआ। साठ हजार के शिखर को छूने वाला शेयर बाजार पांच दिनों के भीतर लगभग 3 हजार अंक टूट चुका है।

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अडाणी-अम्बाणी का क्या रहा कमाल

हर्षद मेहता 90 के दशक में शेयर बाजार में एक ब्रोकर हुए थे। वे शेयर बाजार के ऐसे जानकार निकले कि शेयर बाजार को कम ही समय में दोगुणा अंक तक ले गये थे। 90 के दशक में उस घोटाले से स्टॉक मार्केट में निवेश करने वालों को करीबन 100 अरब रुपये डूब गये थे। उस समय उन्होंने शेयरों की कालाबाजारी का ‘गुरÓ दुनिया को दिखाया था। शेयर बाजार को अपनी स्थापना से लेकर 2014 तक 25 हजार अंक हासिल करने में जो वक्त लगा, उसे दो गुणा से भी ज्यादा होने में मात्र 8 साल लगे। यह तथ्य ध्यान दिया जाना चाहिये कि शेयर बाजार 2014 में 25 हजार अंक पर था। 2022 में वह 60 हजार के अंक को छू चुका है।

पीएम मोदी का ब्यान और गुजराती ब्रदर्स

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक सार्वजनिक सभा में बयान दिया था कि क्या अडाणी और अम्बानी पहले अमीर नहीं थे। वे अब अमीर हुए हैं।

दुनिया के अमीर लोगों की प्रोपर्टी पर नजर रखने वाली फोर्ब्स के अनुसार वर्ष 2013 में मुकेश अम्बानी के पास 21 बिलियन डॉलर और गौतम अडाणी के पास 2.6 बिलियन डॉलर सम्पत्ति थी। वर्ष 2014 में यह बढ़कर 23.6 और गौतम अडाणी 7.1 हो गयी। वहीं मुकेश अम्बाणी के पास 2017 में 38 और गौतम के पास 11 बिलियन डॉलर थी। वर्ष 2019 में मुकेश अम्बानी 51.4 बिलियन डॉलर के मालिक थे तो गौतम अडाणी 15.7 बिलियन डॉलर के। वर्ष 2021 में याने कोरोना के वर्ष 2020 और 2021 के बीच में भी अम्बानी और अडाणी की सम्पत्ति में इजाफा पर ध्यान देने वाला है। मुकेश अम्बानी 92.7 और गौतम अडाणी 74.8 बिलियन डॉलर के मालिक बन गये थे।

रिलायंस इंडस्ट्रीज को 70 के दशक में अपनी स्थापना के उपरांत 2014 तक 23.6 बिलियन डॉलर का मालिक बनने में चार दशक लगे। वहीं इससे चार गुणा अधिक सम्पत्ति एकत्रित करने के लिए मात्र 7 साल का वक्त लगा। दूसरी ओर गौतम अडाणी के पास वर्ष 2014 में 7.1 बिलियन डॉलर ही थे और गत वर्ष कोरोना काल तक वे 74.8 बिलियन डॉलर के मालिक बन गये थे। अडाणी एलन मस्क के बाद दुनिया के दूसरे अमीर आदमी बन चुके हैं। वे पिछले एक साल से रोजाना 1600 करोड़ से प्रतिदिन की आय अर्जित कर रहे हैं।

सरकारी और गैर सरकारी बैंकों की संदिग्ध भूमिका

अगर 1992 का हर्षद मेहता स्कैम को देखा जाये तो उस समय भी यह सामने आया था कि उक्त गुजराती व्यापारी ने बैंकों के साथ मिलीभगत कर फ्रॉड किया था और जब शेयर बाजार का घोटाला उजागर हुआ तो बैंकों ने स्वयं को कर्ज के बोझ तले दबा हुआ पाया था। उस समय पीएमओ में हर्षद की सीधी एंट्री की चर्चाएं आम थीं। (हर्षद मेहता की जीवनी बारे बनी उनकी फिल्म बिग बुल और हर्षद मेहता वेब सीरिज से हासिल की जा सकती है, जिसके काफी कुछ सत्य है)। वहीं अब कुछ सरकारी और गैर सरकारी बैंकों ने अनेक ऐसी डिवेंचर कंपनियां बना रखी हैं जिनका रिकॉर्ड न तो आरबीआई के पास है और न ही सेबी के पास है। सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त सूचना में यह जानकारी दी गयी है। यह कंपनियां लाखों करोड़ का ऋण बांट चुकी है। इन संदिग्ध कंपनियों की भूमिका की जांच की आवश्यकता है। इन कंपनियों से अडाणी समूह ने भी भारी कर्ज लिया हुआ है। शेयर बाजार के जानकारों का मानना है कि यह फंड शेयर बाजार में लगाकर 1990 के दशक जैसी तेजी लायी जा रही है। जिस दिन गुब्बारा फूट गया, उस दिन बाजार में निवेशकों को ऐसा झटका लग सकता है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला सामने आ सकता है।

वित्त मंत्री मूक दर्शक बनकर देख रही हैं


फायनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण सबकुछ देखकर भी चुप्पी साधे हुए हैं और उनका इस्तीफा भी नहीं मांगा जा रहा। वे स्वयं भी हिम्मत जुटाकर इस्तीफा नहीं दे रही हैं। रुपये का कमजोर होने पर भी अभी तक उनकी कोई प्रतिक्रिया सामने आयी हो, यह भी देखने में नहीं आया है। (क्रमश:)

VIASandhyadeep Team
SOURCESandhyadeep Team
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