डॉ. सैनी पीएमओ चौहान के आशीर्वाद से बन गया प्रोफेसर

श्रीगंगानगर। श्रीगंगानगर जिला अस्पताल में नियुक्त डॉ. पवन सैनी को लेकर हर रोज नयी जानकारी सामने आ रही है और यह भी पता चल रहा है कि तत्कालीन पीएमओ डॉ. बलदेव चौहान के साथ मिलीभगत करके सैनी ने प्रोफेसर का पद भी प्राप्त कर लिया, जबकि वह इसके योग्य ही नहीं था। इस पात्रता को जिला अस्पताल का एकमात्र डॉक्टर जयंतनाथ गुप्ता पूरी करते थे और उनका नाम ही नहीं भेजा गया था।

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  • सरकारी नियम कायदों को रखा ताक पर, कांग्रेसी नेता की शिकायत पर नहीं हो रहा असर

श्रीगंगानगर। श्रीगंगानगर जिला अस्पताल में नियुक्त डॉ. पवन सैनी को लेकर हर रोज नयी जानकारी सामने आ रही है और यह भी पता चल रहा है कि तत्कालीन पीएमओ डॉ. बलदेव चौहान के साथ मिलीभगत करके सैनी ने प्रोफेसर का पद भी प्राप्त कर लिया, जबकि वह इसके योग्य ही नहीं था। इस पात्रता को जिला अस्पताल का एकमात्र डॉक्टर जयंतनाथ गुप्ता पूरी करते थे और उनका नाम ही नहीं भेजा गया था।

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विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार डॉ. पवन सैनी को राज्य सरकार ने नामित प्रोफेसर की उपाधि प्रदान की है। वहीं भारत सरकार के गजट नोटिफिकेशन के अनुसार प्रोफेसर पद के लिए उसी व्यक्ति को योग्य माना जायेगा जिसके चार शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हों। वहीं डॉ. सैनी के चार शोध पत्र प्रकाशित ही नहीं हुए। इस पद तक पहुंचने के लिए जिला अस्पताल से एकमात्र चिकित्सक थे डॉ. जयंतनाथ गुप्ता। तत्कालीन पीएमओ डॉ. बलदेव चोहान के साथ मिलीभगत करते हुए डॉ. सैनी ने अपने नाम को भिजवा दिया। वहीं जयंतनाथ का नाम ही नहीं भेजा गया, यहां तक कि एसोसिएट प्रोफेसर पद के लिए भी।
सूची में नाम नहीं होने का शक उस समय हुआ जब उनके जूनियर प्रो. सैनी को प्रोफेसर नामित कर दिया गया और अन्य को एसोसिएट प्रोफेसर। प्रोफेसर बनने के उपरांत डॉ. सैनी जिला अस्पताल का डीन का पद भी प्राप्त कर सकता है और उसके लिए उसको बस कुछ समय का इंतजार करना होगा जबकि अन्य डॉक्टर उससे सीनियर होने के उपरांत भी जूनियर हो गये हैं।
लाभ का पद प्राप्त करने के लिए यह बड़ा घपला हुआ और इसमें डॉ. बलदेव चौहान ने उनका पूरा साथ दिया। वहीं कांग्रेस के देहात ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सचिव बलवंत चौधरी ने सीएम को पत्र लिखा। सीएम के विशेषाधिकारी पीके ने इस पर जांच कर रिपोर्ट भिजवाने और आगामी कार्यवाही के लिए आदेशित तो किया किंतु इसके उपरांत यह आदेश चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में दबकर ही रह गये हैं।
कूटरचित दस्तावेज तैयार करने, पद का दुरुपयोग करने का यह मामला फौजधारी धाराओं में जुर्म है और इस संबंध में राज्य सरकार को अवगत भी करवाया गया है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के जयपुर में बैठे अधिकारी इस अपराध की जानकारी होने के उपरांत भी स्वयं को शांत रखे हुए हैं। वहीं भारतीय दंड संहिता की धारा 212 के तहत जुर्म का सहयोगी भी अपराधी ही होता है।

श्रीगंगानगर जिले में भी हैं सफेदपोश अतीक
राजनीतिक दलों को बाहुबलियों से परहेज नहीं, मतदाता को रहना होगा सतर्क
श्रीगंगानगर। बिहार और उत्तरप्रदेश की राजनीति की जब चर्चा होती है तो वहां पर बाहुबलियों का नाम सबसे पहले आता है। राजा भैय्या, अतीक अहमद जैसे अनेक नाम हैं। अतीक का नाम इसलिए प्रसिद्ध हो गया क्योंकि उस पर हत्या, जमीन पर जबरन कब्जा आदि के 100 से ज्यादा मुकदमे थे और हाइकोर्ट के न्यायाधीश उसके खिलाफ सुनवाई करने में स्वयं को सहज महसूस नहीं करते थे। मुलायम यादव का परिवार राजनीति में कमजोर हुआ तो अतीक ने भाजपा नेताओं से पींगे बढ़ा ली थी और यही कारण था कि योगी आदित्यनाथ की सरकार 1.0 के कार्यकाल में अतीक जेल में भी रहकर जिसको चाहता था, उसको उठवा लेता था। अपहृत को पार्सल के रूप में जेल मंगवा लेता था। राज्य के बड़े भाजपा नेताओं के साथ सम्पर्क में था। इसी कारण उत्तरप्रदेश सरकार ने आग्रह किया कि उसको प्रदेश से बाहर भेजा जाये। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के आग्रह को स्वीकार किया और उसको सारबमती भेज दिया। आदित्यनाथ सरकार 2.0 आई तो हालात बदल गये थे।
अतीक अहमद को लेकर मीडिया लगातार समाचार प्रकाशित कर रहा है किंतु अब राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने वाला है और हर विधानसभा क्षेत्र में अनेक बाहुबली सक्रिय हैं। भुजाओं और हृदय में तो दम नहीं है किंतु अपने आकाओं के कारण वह बाहुबली कहलाते हैं क्योंकि बड़े नेताओं का आशीर्वाद रहता है। यह आशीर्वाद उस समय तक रहता है जब तक संबंधित नेता तक आंच नहीं आती। जब आंच आती है तो वह स्वयं को अलग कर लेता है, जैसा कि अतीक के मामले में सामने आया।
श्रीगंगानगर जिले में अनेक ऐसे लोग हैं जिनका यह मानना है कि धन के आधार पर राजनीतिक दलों की टिकट प्राप्त की जा सकती है और उसी आधार पर मतदाताओं को प्रभावित कर विजय हासिल की जा सकती है। राजनीति के क्षेत्र में भू माफिया, रेता माफिया, वन माफिया आदि शामिल हैं। यह प्रभावशाली इसलिए होते हैं क्योंकि सरकार में बैठे लोग और स्थानीय अधिकारी इनकी मदद करते हैं। एक सिंडीकेट बनाया जाता है जिसमें सभी लोगों के हिस्से तय होते हैं। इस तरह से यह सिंडीकेट माफिया कहलाता है।
शरीफ आदमी राजनीति से दूर होता जा रहा है क्योंकि उसको पता है कि पॉलिटिक्स में एंट्री के साथ ही उसको गुंडों-बदमाशों आदि को संरक्षण देना होगा। चुनावों में होने वाला खर्च निकालने के लिए उसको ऐसे लोगों का साथ देना होगा जो किसी न किसी क्षेत्र में अवैध कार्य करते हें और सिंडीकेट के सदस्य हैं।
भले ही यह राजनीतिक बुराई दूसरे राज्यों में थीं किंतु इसने श्रीगंगानगर ही नहीं अपितु पूरे राजस्थान में पैर जमा लिये हैं और अब मतदाताओं को यह देखना होगा कि वे किस तरह के चेहरे के साथ अपना भविष्य जोड़ते हैं। अतीक ने धन कमाने के लिए अनेक साल तक माफियागिरी और जब उस धन का लाभ प्राप्त करने का समय आया तो यह परिवार सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है। इस कारण मतदान करने से पूर्व यह हृदय में विश्वास रखना कि गलत व्यक्ति को दिया गया वोट अथवा चमक-दमक के प्रभाव में आकर दिया गया साथ, आने वाली पीढिय़ों को भी प्रभावित करेगा।

हाउसिंग बोर्ड ने अधिग्रहण किया, मामला हाइकोर्ट में, अब जमीन को हड़पने की तैयारी
श्रीगंगानगर। राजस्थान के श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय पर राजस्थान आवासन मंडल (आरएचबी/राजस्थान हाउसिंग बोर्ड) ने 14 मुरब्बा जमीन का अधिग्रहण किया था। इन जमीनों पर मकान बनाकर उनको गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों को आवंटित किया जाना था। इन जमीनों के अधिग्रहण के बीच में ही तत्कालीन अध्यक्ष की संदेहास्पद भूमिका भी सामने आ गयी और उन्होंने दो मुरब्बा जमीन को छोडऩे के आदेश दे दिये जिस पर तत्काल प्रभाव से ही पदमपुर इलाके के एक कपड़ा व्यापारी ने तुरंत कॉलोनी बना दी और हाथों-हाथ उसको भी बेच भी दिया। अब 12 मुरब्बा जमीन जिसमें 6 मुरब्बा पर स्टे है किंतु 6 मुरब्बा स्टे न हीं है और हाउसिंग बोर्ड पंचाट भी जारी कर चुका है, उसके उपरांत भी उन जमीनों को खरीदने व बेचने का गौरखधंधा चल रहा है।
विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार राजस्थान हाउसिंग बोर्ड ने करीबन 40 साल पहले श्रीगंगानगर में दो आवासीय योजना पूर्ण की थी। इसके उपरांत हाउसिंग बोर्ड ने श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय को अनदेखा कर दिया। वहीं भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तो तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे ने सिख नेता अजयपाल सिंह को हाउसिंग बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया। अजयपाल सिंह ने 14 मुरब्बा जमीन अधिग्रहण करने की कार्यवाही का आदेश दिया।
यह जमीन जिला मुख्यालय के बाहरी क्षेत्र में दो भागों में बंटी हुई थी। पूर्व और पश्चिम दिशा में। जमीन अधिग्रहण की कार्यवाही को पूर्ण किया गया था कि इस दौरान ही पूर्व दिशा में अधिग्रहण की गयी 8 मुरब्बा में से 2 मुरब्बा जमीन को डीएक्वायर कर दिया गया। इसमें अजयपालसिंह की भूमिका मानी गयी थी और तुरंत प्रभाव से ही पदमपुर के व्यापारी ने इस जगह पर आवासीय कॉलोनी विकसित कर दी।
अब 6 मुरब्बा जमीन पूर्वी दिशा में है और 6 दिशा ही पश्चिमी दिशा में है। 6 मुरब्बा पूर्वी दिशा वाली जमीन पर हाइकोर्ट का स्थगनादेश है। वहीं पश्चिमी दिशा वाले खातेदारों को स्टे नहीं मिल पाया। यह जमीन खातेदारों से तत्कालीन प्रभावशाली लोगों ने खरीद ली। यह प्रभावशाली लोग फेल हो गये तो मौजूदा प्रभावशाली लोगों को बेच दी गयी। हालांकि राजस्थान आवासन मंडल भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत आगामी कार्यवाही करते हुए मुआवजा राशि घोषित कर चुका था। इसके उपरांत जमीनों की खरीद-फरोख्त नहीं की जा सकती।
दूसरी ओर प्रभावशाली मौजूदा लोगों ने नियम कायदों के विपरीत जाते हुए उक्त 6 मुरब्बा जमीन पर खरीद-फरोख्त के उपरांत रजिस्ट्रियां भी करवा लीं और यह कार्य श्रीगंगानगर के सब रजिस्ट्रार कार्यालय में किया गया। इसकी प्रमाणित प्रतियां भी सांध्यदीप के पास हैं। सांध्यदीप ने हाउसिंग बोर्ड के हनुमानगढ़ कार्यालय प्रभारी से इस संबंध में सवाल किया तो उनका कहना है कि धारा 4 के उपरांत अगर कोई खरीद-फरोख्त हो रही है तो वह कानून गलत है। इस संबंध में उन्होंने हाइकोर्ट में मंडल के अधिवक्ता से भी बात की है और शीघ्र ही कॉलोनी को मूर्त रूप दिये जाने के लिए कानूनी सलाह देने के लिए आग्रह किया है।

VIASatish Beri
SOURCEसतीश बेरी्
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