गौतम बुद्धनगर : यूआईटी का भ्रष्टाचार सब पर भारी! अभी तो अनेक डॉ. राकेश बंसल जैसे नाम सामने आयेंगे

श्रीगंगानगर। नगर विकास न्यास में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर चर्चाएं सालों से होती आ रही हैं किंतु गौतम बुद्धनगर आवासीय योजना को लेकर जिस तरह की पौल खुल रही है, उससे न्यास के अधिकारी कटघरे में खड़े हो गये हैं और उनके लिए इस संकट से बाहर निकलने के लिए कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। स्वयं द्वारा रचित चक्रव्यूह में वे स्वयं ही फंस गये हैं।

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श्रीगंगानगर। नगर विकास न्यास में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर चर्चाएं सालों से होती आ रही हैं किंतु गौतम बुद्धनगर आवासीय योजना को लेकर जिस तरह की पौल खुल रही है, उससे न्यास के अधिकारी कटघरे में खड़े हो गये हैं और उनके लिए इस संकट से बाहर निकलने के लिए कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। स्वयं द्वारा रचित चक्रव्यूह में वे स्वयं ही फंस गये हैं।
नगर विकास न्यास ने 187 बीघा भूमि का अधिग्रहण करते हुए स्कीम नंबर 8 का नाम दिया था जिसको कुछ समय पूर्व गौतम बुद्धनगर कर दिया गया। भगवान गौतम जिन्होंने ईश्वर प्राप्ति के लिए राजपाट का त्याग कर दिया था। संतान, पत्नी सुख सभी को भूल गये थे। उनके नाम पर गौतम बुद्धनगर बसाया गया। यह इलाका बाइपास पर है और मेडिकल कॉलेज-सरकारी अस्पताल के बिलकुल नजदीक है। इसको हृदयस्थल भी कहा जाने लगा है।

 

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वर्ष 2018 में मामला हाइकोर्ट की डबल बैंच में था। उस समय नगर विकास न्यास और खातेदारों के बीच एमओयू हुआ था। इस एमओयू कहा गया था कि सरकार खातेदारों को 20 प्रतिशत आवासीय और 5 प्रतिशत व्यवसायिक क्षेत्र देगी। न्यास और खातेदारों ने 2018 के इस एमओयू के बारे में हाइकोर्ट को नहीं बताया गया कि अदालत से बाहर ही हमारा मामला सुलट गया है। जिस समय एमओयू हुआ उस समय भाजपा सरकार थी और दिसंबर 2018 में कांग्रेस सरकार ने सत्ता संभाली।

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सत्ता परिवर्तन के उपरांत भी उच्च न्यायालय को अवगत नहीं करवाया गया और वर्ष 2020 में हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया। इंदौर विकास प्राधिकरण बनाम मनोहरलाल आदि के मामले का निस्तारण करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने भूमि अधिग्रहण के संबंध में एक व्यवस्था निर्धारित की।

6 मार्च 2020 को यह फैसला आया। इसके उपरांत 28 सितंबर 2020 को उच्च न्यायालय ने नगर विकास न्यास के हक में फैसला सुनाया। इसके साथ ही खातेदारों के साथ हुआ एमओयू का कोई आधार नहीं रहा क्योंकि एमओयू की जानकारी हाइकोर्ट को दी ही नहीं गयी थी।

 

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इसके उपरांत भी एमओयू को पूर्ण करने के लिए 20 प्रतिशत आवासीय और 5 प्रतिशत व्यवसायिक क्षेत्र दे दिया गया। 100 प्रतिशत जमीन में से सभी तरह की सुविधाएं यथा पार्क, सड़क, पार्किंग, कम्युनिटी सेंटर आदि को शामिल किया जाये तो यह करीबन 45 प्रतिशत हो जाता है। शेष 55 प्रतिशत क्षेत्र ही शेष रहता है। इसमें भी 25 प्रतिशत खातेदारों को दे दिया गया, वह भी हाइकोर्ट के आदेशों के विपरीत।

अब 30 प्रतिशत जमीन नगर विकास न्यास के पास थी और इस जमीन में से भी 110 बीघा पर यह कॉलोनी बनाया जाना बताया गया है। इसमें भी 578 भूखण्ड काटे जाने थे। यह योजना मूल रूप से उन लोगों के लिए थी जो आजादी के 70 सालों उपरांत भी अपने लिये घर नहीं बना पाये हैं। उनको एक निश्चित दर पर यह भूखण्ड दिये जाने थे। अब नगर विकास न्यास ने आवेदन प्राप्त करने की प्रक्रिया तो आरंभ कर दी किंतु न तो आवेदनों की छंटनी की गयी। न ही आवेदकों के नाम को उजागर किया गया, यहां तक कि लॉटरी निकलने के उपरांत भी उनके शहर, उपनगर, गली नंबर, मकान नंबर आदि को सार्वजनिक नहीं किया गया।

वहीं न्यास ने कई श्रेणी भी बना दी। एमआईजी ए, बी, एचआईजी, ईडब्ल्यूएस आदि-आदि। इस तरह से डॉ. राकेश बंसल, जो शहर के सबसे ज्यादा आय अर्जित करने वाले डॉक्टर्स में से एक हैं, जिनके परिवार के पास अनेक मकान हैं। अस्पताल है। फोर्ट रजवाड़ा जैसा होटल है। वह भी आवासहीन बनकर सामने आ गये।

उनके पुत्र और पुत्रवधू दोनों ने ही आवेदन किया। अब यह भी ‘संयोगÓ ही है कि दोनों के भूखण्ड एक ही सैक्टर में ‘लॉटरीÓ के माध्यम से निकले। वहीं बहुत से अन्य लोग भी हैं, जिनकी पहचान सामने आने के उपरांत वह भी सवालों के घेरे में आयेंगे। इस संबंध में न्यास अधिकारी कह रहे हैं कि दोनों में से एक को ही भूखण्ड दिया जायेगा। वहीं सवाल यह है कि जो पात्र नहीं होंगे, उनकी लॉटरी न्यास फिर से निकालेगा या वह भी बंदरबांट हो जायेगी।

दूसरी ओर आप साथ लगे फोटोज पर भी नजर डाल सकते हैं कि इस एमओयू में साफ शब्दों में लिखा गया है कि इस एमओयू की जानकारी अभिभाषक के माध्यम से अदालत को दी जायेगी। अदालत से मंजूरी मिलने के उपरांत ही यह एमओयू लागू होगा। यह फोटो नगर विकास न्यास से सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत प्रमाणित कॉपी के रूप में प्राप्त की गयी है।

VIAसतीश बेरी
SOURCEसतीश बेरी्
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