श्रीगंगानगर। नगर विकास न्यास में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर चर्चाएं सालों से होती आ रही हैं किंतु गौतम बुद्धनगर आवासीय योजना को लेकर जिस तरह की पौल खुल रही है, उससे न्यास के अधिकारी कटघरे में खड़े हो गये हैं और उनके लिए इस संकट से बाहर निकलने के लिए कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। स्वयं द्वारा रचित चक्रव्यूह में वे स्वयं ही फंस गये हैं।
नगर विकास न्यास ने 187 बीघा भूमि का अधिग्रहण करते हुए स्कीम नंबर 8 का नाम दिया था जिसको कुछ समय पूर्व गौतम बुद्धनगर कर दिया गया। भगवान गौतम जिन्होंने ईश्वर प्राप्ति के लिए राजपाट का त्याग कर दिया था। संतान, पत्नी सुख सभी को भूल गये थे। उनके नाम पर गौतम बुद्धनगर बसाया गया। यह इलाका बाइपास पर है और मेडिकल कॉलेज-सरकारी अस्पताल के बिलकुल नजदीक है। इसको हृदयस्थल भी कहा जाने लगा है।
अरोड़वंश समाज कल्याण के लिए बने स्थायी आयोग : पूनम
वर्ष 2018 में मामला हाइकोर्ट की डबल बैंच में था। उस समय नगर विकास न्यास और खातेदारों के बीच एमओयू हुआ था। इस एमओयू कहा गया था कि सरकार खातेदारों को 20 प्रतिशत आवासीय और 5 प्रतिशत व्यवसायिक क्षेत्र देगी। न्यास और खातेदारों ने 2018 के इस एमओयू के बारे में हाइकोर्ट को नहीं बताया गया कि अदालत से बाहर ही हमारा मामला सुलट गया है। जिस समय एमओयू हुआ उस समय भाजपा सरकार थी और दिसंबर 2018 में कांग्रेस सरकार ने सत्ता संभाली।
केन्द्रीय एजेंसियों के सीनियर अधिकारी भी गृह जिले में, होम मिनिस्ट्री पर उठ रहे सवाल?
सत्ता परिवर्तन के उपरांत भी उच्च न्यायालय को अवगत नहीं करवाया गया और वर्ष 2020 में हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया। इंदौर विकास प्राधिकरण बनाम मनोहरलाल आदि के मामले का निस्तारण करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने भूमि अधिग्रहण के संबंध में एक व्यवस्था निर्धारित की।
6 मार्च 2020 को यह फैसला आया। इसके उपरांत 28 सितंबर 2020 को उच्च न्यायालय ने नगर विकास न्यास के हक में फैसला सुनाया। इसके साथ ही खातेदारों के साथ हुआ एमओयू का कोई आधार नहीं रहा क्योंकि एमओयू की जानकारी हाइकोर्ट को दी ही नहीं गयी थी।
राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में वायुसेना का एक फाइटर जेट दुर्घटनाग्रस्त