अवैध ब्याज के धंधे को कानूनी जामा पहनाता भारतीय नैगोशिएबल एक्ट

नई दिल्ली। भारत में 33 लाख से अधिक मुकदमे अदालतों में नैगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1861 के तहत विचाराधीन है। यह एक्ट भारतीय संविधान के सृजन से पूर्व का बना हुआ है। इसमें कुछ संशोधन किये गये हैं

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नई दिल्ली। भारत में 33 लाख से अधिक मुकदमे अदालतों में नैगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1861 के तहत विचाराधीन है। यह एक्ट भारतीय संविधान के सृजन से पूर्व का बना हुआ है। इसमें कुछ संशोधन किये गये हैं और इसको कड़ा बना दिया गया।

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एक व्यक्ति को सिर्फ इस कारण सजा सुना दी जाती है क्योंकि उसने बैंक की सम्पत्ति ( चैक) पर हस्ताक्षर किये होते हैं। चैक भारत के रिवर्ज बैंक से अनुमोदित बैंक की सम्पत्ति होती है। इस तरह से चैक अनादरित होता है तो संबंधित बैंक भी इसके लिए जिम्मेदार होता है क्योंकि उसने अपनी सम्पत्ति अन्य व्यक्ति को दी थी। अगर क्रेडिट लिमिट देखकर चैक दिया जाये तो अनादरण के मामले बेहद कम हो जाते हैं।

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छोटे-छोटे नगरों के भीतर चैक अनादरण के इतने केस हैं कि वहां पर अदालतों को इनका संधारण करना भी आसान कार्य नहीं रहा है। आत्महत्या जैसी घटनाओं में भारी इजाफा हुआ है।
वहीं सर्वोच्च न्यायालय तक भारत सरकार को यह लिख चुकी है कि बढ़ते मामलों पर अंकुश के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर कदम उठायें।

चैक अनादरण के बढ़ते मामलों का एक मुख्य कारण यह भी है कि अवैध ब्याज दरों का धंधा बढ़ा है। प्राइवेट सैक्टर में फायनेंस और बैंकों की संख्या बढ़ने के बावजूद मध्यम वर्ग के लिए क्रेडिट लिमिट प्राप्त करना आज भी दुष्कर कार्य है।
ऐसे में वे अपनी घरेलू जरूरतों को लेकर धन को ब्याज पर लेते हैं और बदले में चैक को सिक्योरिटी के रूप में दे दिया जाता है। ऐसे फायनेंसर खाली चैक लेते हैं और उन पर 10 से 20 गुणा तक राशि को अंकित कर चैक अनादरित करवाते हैं और अदालतों में केस लगा दिया जाता है।

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इस तरह से सरकारी संस्थाओं का उपयोग प्रताड़ना के रूप में किया जा रहा है। इस तरह से अवैध ब्याज के धंधे को कानूनी जामा पहनाया जा रहा है।
हालांकि राजस्थान सहित कुछ राज्य सरकारों ने अवैध ब्याज का धंधा करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए कहा है किंतु इस तरह के अपराध की रोकथाम के लिए विशेष कानून नहीं बनाया गया है।
यह कानून मानवाधिकारों के हनन का एक प्रमुख हथियार बना हुआ है किंतु इसकी रोकथाम के लिए अभी तक केन्द्र सरकार भी बड़े कदम नहीं उठा पायी है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय इस संबंध में आवश्यक कदम उठाने के लिए संघीय और राज्य सरकारों को लिख चुकी है।

एनआई एक्ट को अगर विलुप्त कर दिया जाता है तो इससे लाखों लोगों के जीवन को अंधेरे में डूबने से बचाया जा सकता है।

VIASandhyadeep Team
SOURCENews Agency
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