श्रीगंगानगर। सनातन धर्म में आस्था रखने वालों के लिए गाय माता है। अनेक देवताओं का वास गाय में बताया गया है और उन्हीं गाय पर एक वायरस के कारण भारी संकट आ गया है। जिले में हजारों गायों के बीमार होने की जानकारी सामने आ रही है। इस विपदा की घड़ी में हर सनातनी का फर्ज निजी रूप से लम्पी महामारी के खिलाफ सहयोग के लिए बन जाता है।
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श्रीगंगानगर जिले में अनेक बड़ी गौशालाएं हैं। उन गौशालाओं के पास रिजर्व फंड भी है। यह फंड गौ भक्तों की ओर से दिये गये दान के रूप में प्राप्त होता है। जो जानकारी मिली है, उसमें बताया गया है कि सुखाडिय़ा सर्किल के पास स्थित गौशाला की प्रबंधन समिति के पास एक करोड़ से ज्यादा का सुरक्षित धन है। वहीं पदमपुर मार्ग पर स्थित गौशाला के पास 70 लाख से ज्यादा का रिजर्व फंड है।
दूसरी ओर अनेक ऐसी गौशालाएं भी हैं जो गांवों में छोटे-छोटे रूप में हैं और गांववालों के सहयोग से ही संचालित की जा रही हैं। उनको सरकारी अनुदान भी प्राप्त नहीं होता। वहां भी पशुओं के बीमार होने की जानकारी सामने आ रही है। हजारों की संख्या में ऐसे गौवंश हैं जो बेसहारा हैं। वे इधर-उधर भटककर अपना पेट पालते हैं। उनके भी बीमार होने की आशंका है।
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इस तरह से एक बड़ा संकट है। इस संकट की घड़ी में गौवंश को मरता हुआ नहीं देखा जा सकता। सरकार के पास पर्याप्त संख्या में डॉक्टर भी नहीं है। पशुपालन विभगा के संयुक्त निदेशक रामबीर शर्मा मान चुके हैं कि संसाधन कम हैं। वहीं सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते युवा वर्ग में पशु चिकित्सक बनने के लिए उतना उत्साह भी नहीं देखा जाता। अधिकांश मेडिकल छात्र ह्यूमन क्षेत्र में ही शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं।
कुछ समाजसेवी संस्थाएं सामने आ रही हैं जो तन-मन-धन से सहयोग करने को तैयार हैं। वहीं शहर की दोनों प्रमुख गौशालाओं के अध्यक्ष का मानना है कि उनके पास इतने संसाधन नहीं है कि वे बेसहारा पशुओं की देखभाल अथवा उनकी चिकित्सा व्यवस्था कर सकें। सुखाडिय़ा सर्किल स्थित गौशाला प्रबंध समिति के अध्यक्ष रमेश खदरिया का कहना है कि गौशालाओं के पशुओं के अतिरिक्त उनके पास अन्य पशुओं के लिए संसाधन नहीं है। वे सूचना प्राप्त होने पर गौवंश को दवा पहुंचा देते हैं। वे गौशाला के आइसोलेशन में उनको नहीं रख सकते।
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