नई दिल्ली/न्यूयार्क/सिडनी (टीएसएन)। श्रीलंका में विदेशी मुद्रा के कारण बेरोजगारी, महंगाई और भूखमरी का सामना करना पड़ रहा है। यूक्रेन में युद्ध के कारण लोग शराणार्थी का जीवन जी रहे हैं। खाद्य संकट वहां भी है। अफ्रीकी देशों में चिकित्सा, शिक्षा और भोजन की भी एक गंभीर समस्या है। नेपाल, पाकिस्तान, म्यांमार के भी आर्थिक हालात कमजोर होते जा रहे हैं। कोरोना और उसके उपरांत युद्ध ने विश्व की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
दुनिया की प्रमुख आर्थिक शक्ति माने जाने वाले अमेरिका में महंगाई के विरोध में स्वर सुनाई देने लगे हैं। एक तरफ राष्ट्रपति जोसेफ आर बाइडेन यूक्रेन युद्ध आरंभ होने के उपरांत उसको 3 अरब डॉलर से ज्यादा की सहायता दे चुके हैं। यूरोपिय देश भी मदद करने में पीछे नहीं है।
फॉक्स न्यूज के डिजीटल संस्करण में प्रत्येक राज्य में प्रत्येक दिन पेट्रोल की कीमतें किस प्रकार हैं, इसके लिए अलग से व्यवस्था की गयी है।
हालांकि संयुक्त राज्य में अधिकतम पेट्रोलियम पदार्थ का दाम 6 डॉलर से कम है किंतु इसको भी महंगाई के रूप में देखा जा रहा है।
ध्यान योग्य बात यह है कि दुनिया में सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश अमेरिका है। इसके उपरांत भी वहां पर 6 डॉलर के आसपास दाम होने का अर्थ यह है कि सरकार वहां पर कार्पोरेट जगत को मदद करने की तरफ ज्यादा ध्यान दे रही है। अगर इसका भारतीय मुद्रा में आकलन किया जाये तो यह 400 रुपये प्रति लीटर का भाव हो जाता है
कोरोना के कारण जब विश्व में लॉकडाउन का दौर आरंभ हुआ था तो उस समय भी विश्वस्तरीय चिंतकों ने यह आशंका व्यक्त की थी कि तालाबंदी के कारण कोरोना के मुकाबले ज्यादा मौतें हो सकती हैं।
आज समीक्षा की जाये तो श्रीलंका, अमेरिक, भारत, फ्रांस, पाकिस्तान, म्यांमार सहित अनेक देश महंगाई के दौर से गुजर रहे हैं।
यूक्रेन भौगोलिक रूप से दुनिया के बड़े देशों में शामिल हैं। वहां पर पैदा होने वाले अनाज से अनेक देशों को लाभ मिलता था। रूस पर प्रतिबंध लगा दिये गये हैं।
रूस से कपड़ा, कागज, खाद्य पदार्थ निर्यात नहीं हो पा रहे हैं। इसका असर हर क्षेत्र पर दिखाई दे रहा है।
कागज की आपूर्ति कमजोर होने के कारण प्रिंट मीडिया पर भी भारी संकट आ गया है। चीन से अखबारी कागज का निर्यात पहले ही बंद हो गया था।
रूस में अब युद्ध के कारण संकट आ गया है। इसका असर भारत सहित अन्य देशों के प्रिंट मीडिया घरानों पर साफ देखा जा सकता है।
एक समाचार पत्र समूह के प्रधान सम्पादक के अनुसार अखबारी कागज का मूल्य करीबन-करीबन 90 रुपये प्रति किलो हो गया है। वहीं एल्युमिनियम की प्लेट्स का भाव 100 से बढ़कर 175 रुपये तक पहुंच गया है।
प्रकाशक के अनुसार अगर छीज्जत को भी मान लिया जाये तो भाव 100 रुपये प्रति किलो हो जाते हैं। इस तरह से प्रत्येक चार पेज का अखबार का सिर्फ कागज मूल्य ही 2 रुपये हो जाता है। अगर 20 पृष्ठ का अखबार निकाला जाता है तो करीबन 8 रुपये सिर्फ कागज के ही मूल्य हो जाते हैं। बिजली, स्याही, प्लेट्स, लेबर सहित सभी खर्चों को मिलाया जाता है तो प्रत्येक अखबार का मूल्य क्या हो सकता है, यह पाठक भी अनुमान लगा सकता है
वहीं आशंका यह जतायी जा रही है कि यूरोपिय देशों की मदद के कारण रूस कमजोर हो रहा है। इस कारण युद्ध लम्बा चल सकता है। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि अगले 6 माह किस प्रकार से होने वाले हैं।
सउदी अरब ने तेल उत्पादन बढ़ाने से इन्कार कर दिया है। इस तरह की स्थिति में विश्व में तेल के उत्पादन और मांग में अंतर बढ़ता चला जायेगा जिसका असर मूल्यों पर आगामी दिनों में दिखाई दे सकता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने प्रमुख तेल उत्पादक देशों नाइजरिया, वेनेजुएला, रूस, ईरान आदि पर प्रतिबंध लगाये हुए हैं। इस तरह से वृहद स्तर पर तेल की आपूर्ति करने वालों में अमेरिका, कनाडा, सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात आदि देश ही रह गये हैं।
अगर मुख्य खाद्य पदार्थ गेहूं को देखा जाये तो जहां सरकारी स्तर पर भाव 2 हजार रुपये प्रति क्विंटल के आसपास रखे गये हैं तो बाजार में नयी आवक आने से पूर्व ही भाव 22 सौ या इससे भी अधिक मिल रहे हैं।
अनेक व्यापारी किसानों के खेतों में ही जाकर सौदा कर रहे हैं और किसानों को गेहूं लेकर आने की आवश्यकता ही नहीं हो रही। विश्व में गेहूं की मांग बढ़ती जा रही है। केन्द्र सरकार इसको निर्यात के लिए बेहतर मौका मान रही है किंतु सरकार को यह नहीं भूलना चाहिये कि देश में इसका भार सीधा निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों पर दिखाई देगा।
फल-सब्जी और अन्य के दाम भी हर रोज नयी ऊंचाई को छू रहे हैं। इस तरह के हालात में महंगाई के और बढ़ने की संभावना से वित्तीय जानकार इंकार नहीं कर रहे हैं।
भारत के केन्द्रीय बैंक ने हाल ही में ब्याज दर की समीक्षा की थी किंतु इसमें बदलाव नहीं किया था किंतु जैसे-जैसे मुद्रास्फीति ऊंचाई की ओर जायेगी, उस समय आरबीआई पर भी दबाव बनेगा।
नेपाल ने महंगाई और विदेशी मुद्रा भंडार की कमजोर स्थिति को देखते हुए व्यापक व्यवस्था नहीं करने के कारण अपने केद्रीय बैंक के गर्वनर को उनके पद से बेदखल कर दिया है।
ग्लोबल इकॉनॉमी का लाभ अगर पिछले सालों के दौरान कार्पोरेट जगत ने उठाया है तो अब युद्ध के कारण जो विपरीत प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा तो इसका नुकसान सर्वाधिक मध्यमवर्गीय परिवारों को होगा। महंगाई सबसे ज्यादा उनको प्रभावित करेगी।
फ्रांस में तो दो साल पहले ही लिविंग कोस्ट को लेकर येलोवेस्ट हर वीकेंड को हिंसक प्रदर्शन कर सरकार को जगा रहे थे।
अब वही हालात श्रीलंका में देखे जा सकते हैं। कुछ दिनों उपरांत विश्व के कुछ अन्य देशों में भी इसी तरह की स्थिति बन सकती है।
तेल की महंगाई के कारण दुपहिया वाहनों की बिक्री 10 सालों में सबसे कम स्तर पर पहुंच गयी है किंतु खाद्य पदार्थों की कमी के कारण इसका आम व्यक्ति पर किस प्रकार का असर होगा, यह देखने वाला होगा।