Thursday, March 23, 2023
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यूक्रेन विवाद : अमेरिका-रूस के बीच तनाव बढ़ने से आर्थिक हालात भी होंगे प्रभावित

सोवियत संघ का कभी हिस्सा रहे और वर्तमान में यूरोपीय देशों के सबसे नजदीकी रिश्ते रखने वाले यूक्रेन ने अपने सैनिकों की क्षमता को बढ़ाने का निर्णय लिया है। संवाद सेवा रॉयटर के अनुसार इस समय यूक्रेन के पास करीबन अढ़ाई लाख सैनिक हैं

वाशिंगटन/मास्को। पश्चिमी देश रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन को अडोल्फ हिटलर की तरह पेश कर रहे हैं। हिटलर ने विशाल जर्मन की कल्पना करते हुए पौलेंड पर हमला कर दिया था और उसके समर्थन में ब्रिटेन, फ्रांस की सेनाएं आ गयी थी और इसके उपरांत विश्वभर में दुनिया दो भागों में बंट गयी।
अमेरिका और ब्रिटेन सरकार के शीर्ष नेताओं के बयानों को सुना और पढ़ा जाये तो सामने आता है कि रूस कभी भी यूक्रेन पर हमला कर सकता है। हालांकि रूस बार-बार इन बयानों को अस्वीकार करता आ रहा है कि वह यूक्रेन पर हमला करने वाला है। यह बयान उस समय सामने आ रहे हैं जब रूस सेना के 1 लाख से अधिक जवान सीमाओं पर तैनात हैं और बेलारूस, कजाखस्तान में भी रूसी सेना मौजूद है।

अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ब्रिटेन, जर्मन आदि के रूस के साथ मीठे संबंध नहीं रहे हैं। रूस से हमले के बचाव के लिए अमेरिका ने अपने 12 हजार से अधिक सैनिकों को जर्मन में एक सेना कैम्प में तैनात किया हुआ था जो आपात परिस्थितियों के लिए हर समय तैनात रहते थे।

ईरान, तुर्की, वेनेजुएला, सीरिया और चीन यह अमेरिका के सबसे मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं। वहीं रूस के यह सबसे नजदीकी मित्र भी हैं। इसका अर्थ यह है कि जो अमेरिका का धुर विरोधी है वह रूस का मित्र है। इसी तरह से यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदीमेयर जेलेंस्की पश्चिमी देशों के समर्थक माने जाते हैं तो वह रूस का धुर विरोधी माना जाता है।

रूस ने हाल ही में तुर्की को एस-400 एंटी मिसाइल सिस्टम बेचने का निर्णय लिया था और अमेरिका ने तुर्की पर कडे़ प्रतिबंध लगा दिये थे। ईरान पहले ही परमाणु संयंत्र को लेकर प्रतिबंधों को झेल रहा है और उसकी मुद्रा लगातार रसातल में जा रही है। अब वह रूस के साथ हिन्द महासागर में सेना अभ्यास की योजना बना रहा है। सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद को रूसी समर्थक माना जाता है तो उस पर भी अमेरिकी प्रतिबंध हैं। हालांकि सीरिया में आईएस के ठिकानों पर सीरिया-रूसी सेना भी हमले करती है और अमेरिकी सेना भी वहां पर कार्यरत रही है।

अमेरिका-ब्रिटेन के लिए यह बड़ा मुद्दा क्यों?

आगामी 8 नवंबर 2022 को अमेरिका में संसद के नीचले सदन के लिए मतदान होना है। डेमोक्रेटिक पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाले जोई बाइडेन के पास इस समय मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाने के लिए बड़ा मुद्दा नहीं हैं। महंगाई की मार लगातार वहां के मध्यमवर्ग को प्रभावित कर रही है। गैस की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। कोरोना के कारण आर्थिक स्थिति भी प्रभावित है और बेरोजगारी व मंदे की मार अलग से है। डोनाल्ड ट्रम्प को छोड़ दिया जाये तो मध्य एशिया के देशों पर आक्रमण कर वहां चुनाव जीतने का फार्मूला रहा है। ईराक पर हमला कर वहां के शासक सद्दाम हुसैन को फांसी लगा दी गयी जबकि जांच में वहां कोई परमाणु हथियार नहीं मिला। ईरान के साथ परमाणु हथियारों के विवाद का विषय अब उतना प्रभावी नहीं रहा। उत्तर कोरिया का शासक किम जोंग उन दुनिया के किसी भी नेता की बात 10 सालों से नहीं मान रहा। इस तरह से अमेरिका के लिए रूसी विवाद सबसे बड़ा मुद्दा बन सकता है।

नाटो सेना हाल ही में सीरिया, अफगानिस्तान से बाहर लौट गयी हैं। अमेरिका जिस तालिबान नामक संगठन को आतंकवादी मानता रहा है और अल कायदा का सहयोगी, उसको पनाहगार मानता रहा है, उसके हाथों में पुन: अफगान की सत्ता चले जाना भी संयुक्त राज्य के लिए महत्वपूर्ण नहीं रहा है।
इसी तरह से ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन इस समय अपने देश में राजनीतिक रूप से सबसे बुरे दिनों का सामना कर रहे हैं। पिछले दिनों खुलासा हुआ था कि कोरोना के कारण जिस समय ब्रिटेन में हालात सबसे ज्यादा खराब थे। उस समय प्रधानमंत्री के सरकारी निवास पर शराब पार्टियों का आयोजन हुआ था। श्री जॉनसन ने इसके लिए संसद में खेद भी व्यक्त किया है किंतु इसके उपरांत भी विवाद कम नहीं हुआ है। अब वे यूक्रेन की राजधानी कीव की यात्रा कर रहे हैं और इस तरह से ब्रिटेन के वर्तमान मुद्दों से ज्यादा महत्वपूर्ण श्री जॉनसन की कीव यात्रा हो गयी है।

यूक्रेन अपनी सेना की क्षमता को बढ़ायेगा

सोवियत संघ का कभी हिस्सा रहे और वर्तमान में यूरोपीय देशों के सबसे नजदीकी रिश्ते रखने वाले यूक्रेन ने अपने सैनिकों की क्षमता को बढ़ाने का निर्णय लिया है। संवाद सेवा रॉयटर के अनुसार इस समय यूक्रेन के पास करीबन अढ़ाई लाख सैनिक हैं जबकि रूस के पास 9 लाख सैनिक हैं। इस तरह से करीबन एक लाख सैनिकों का इजाफा वहां की सरकार करने जा रही है। राष्ट्रपति ने संसद में कहा है कि सैनिकों की संख्या बढ़ने से यूक्रेन में स्थायी शांति स्थापित हो सकती है। वहीं ब्रिटेन ने भी सैन्य साजोसामान सप्लाई करना आरंभ कर दिया है। अमेरिका ने पहले ही कहा है कि वह युद्ध की स्थिति में रूस पर कड़े प्रतिबंध लगा सकता है।

पुतिन की छवि हिटलर की तरह पेश करने की तैयारी

दूसरे विश्वयुद्ध का गुनाहगार तत्कालीन जर्मन शासक हिटलर को माना जाता है। इतिहास में पढ़ाया जाता है कि हिटलर के आदेश पर सेना ने पौलेंड पर हमला कर दिया था और उसके समर्थन का एलान करने वाले ब्रिटेन व फ्रांस ने जर्मन के खिलाफ संघर्ष आरंभ कर दिया था। अब उसी तरह से यूक्रेन को एक ऐसा देश दिखाया जा रहा है जो कमजोर है और रूस उस पर आक्रमण कर सकता है। अमेरिका-ब्रिटेन बार-बार उसको पूर्ण समर्थन देने का एलान कर रहे हैं और विदेश मंत्री एंटनी जे ब्लिंकन कनाडा, इजरायल सहित कई नेताओं से वार्ता कर रूस-यूक्रेन मुद्दे पर चर्चा कर चुके हैं। वे यूरोपीय देशों के साथ भी सम्पर्क में हैं।
2016 के चुनावों में रूस के हस्ताक्षेप को मानता है अमेरिका
संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्ष 2016 के राष्ट्रपति चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता, पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन को पराजय हासिल हुई थी। मीडिया रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि रूस ने चुनावों को प्रभावित किया और डोनाल्ड ट्रम्प को विजयी बनाने में हैकर का सहयोग लिया। वर्ष 2020 के चुनाव कोरोना के बहाने डाक मतपत्र के जरिये करवाये गये थे और ट्रम्प ने इसको चुनावी धांधली बताया था।
अब एक पुन: डेमोक्रेटिक पार्टी सत्ता में है तो वह रूस पर लगातार दबाव बनाये हुई है। सभी नेता यूक्रेन पर हमले का अंदेशा जता रहे हैं।

ब्रिटेन-यूएसए के नेताओं के बयानों को पढ़ा व सुना जाये तो साफ है कि दोनों देश मान रहे हैं कि कभी भी युद्ध हो सकता है। हालांकि रूस सरकार का कहना है कि अमेरिका ने 26 जनवरी को जो लिखित मसौदा रूस को दिया है उस पर राष्ट्रपति स्वयं विचार कर रहे हैं और इसके बाद आगामी कार्यवाही का निर्णय लिया जायेगा।

वेनेजुएला में रूसी सेना मौजूदा

अमेरिका के पड़ोसी देश वेनेजुएला में वर्तमान सरकार को अमेरिका मान्यता नहीं देता है। इस कारण वेनेजुएला से एक प्रकार से रिश्तों को समाप्त कर दिया गया है। उस तरह के हालात में वहां रूस की सेना ने मोर्चा संभाला हुआ है। अमेरिका ने अपने सहयोगी संगठन नाटो की सेना को रूस के बॉर्डर के नजदीक यूक्रेन में तैनात कर दिया है। इस तरह से विश्व को युद्ध का माहौल दिखाया जा रहा है।
विश्व के आर्थिक हालात होंगे खराब
अगर विश्व के प्रमुख नेताओं के बयानों पर यकीन कर लिया जाये और यूक्रेन के साथ रूस का युद्ध आरंभ हो जाता है तो इससे न केवल कच्चे तेल, गैस की सप्लाई प्रभावित होगी बल्कि इन दोनों ईंधन के कारण महंगाई का बोझ विश्व के मध्यमवर्गीय परिवारों पर आ जायेगा। उस समय प्रोपर्टी का कारोबार जो दुनिया भर में तेजी का रूख अपनाये हुए है, उसको भी भारी नुकसान होने का अंदेशा है।

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